मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

एक चुल्लू पानी का है पता मालूम

हुस्न का गरूर, परवान चढ़े तो बस अब इश्क है, मजलूम
मुहब्बत झूठी ही सही, पर हूँ तो उसका ही बेतार तरन्नुम

सुना है, इस फागुन में कुछ अधिक ही खपत में है माजूम
हँसनेवाला, रोनेवाला कौन होश में है, है किसको मालूम

सहमा हूँ, कह न दे कोई प्यारे मुल्क को उम्मत-ए-मरहूम
बात गहरी नहीं उतनी एक चुल्लू पानी का है पता मालूम

गर्जन भी है, वर्जन भी है, अर्जन कहाँ बस यह नहीं मालूम
सीना जितना ही बड़ा उदर, डकार
में निकला नहीं हालूम

जल, जंगल, जमीन सब तो बस गोविंद के हैं, है ना मालूम
इतना मालूम है जब, तब गोविंद कौन बस यह नहीं मालूम

सारी अक्ल लगाई मादरे जुबान की अहमियत में, मालूम
मेरा वतन अब मदारी जुबान का है कायल कैसे नामालूम

मुहब्बत झूठी ही सही, पर हूँ तो उसका ही बेतार तरन्नुम
कहाँ ज्ञान का जन्नत और कहाँ भूख, गरीबी का जहन्नुम

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें