अतीत हो कर भी जो व्यतीत नहीं होता वह इतिहास का हिस्सा बनता है। यह देखिये कमाल कि जिनके चाल-चरित्र-चेहरा से हर वक्त अतीत के प्रति अनुराग और गर्वबोध झलकता रहता है उन्हें इतिहास से जबर्दस्त एलर्जी है! अतीत से इतना अनुराग और इतिहास से इतनी एलर्जी!
साल 2014 की तारीख 14 नवंबर। जवाहरलाल नेहरू की 125वीं वर्षगांठ। जवाहरलाल नेहरू की नीतियों, बातों से कोई घोर असहमत हो सकता है, कोई अभिभूत हो सकता है। लेकिन कोई चाहकर भी जवाहरलाल नेहरू को भुला नहीं सकता है। सरकार क्या कार्यक्रम लेती है, विभिन्न राजनीतिक दल क्या कार्यक्रम लेते हैं, कौन कहाँ आमंत्रित होता है, किस मंच पर कितने ऊँचे आसान पर बैठता है, तत्काल के राजनीतिक हुल्लड़ के लिए इसका जो भी महत्त्व हो, इसकी अनुगूँज इतिहास के कान तक नहीं पहँच सकती है। जो लोग समझते हैं कि उन्हें इतिहास से कोई लेना-देना नहीं है उन्हें एक बात समझनी चाहिए कि उन्हें न हो, इतिहास को तो हर किसी से लेना-देना होता है ▬▬ आप अपने लोगों को इतिहास को छेड़ने और छोड़ने के भ्रम में जीने के सुख का 'आनंद' सुनिश्चित करने का गुर सिखा सकते हैं। जवाहरलाल नेहरू से असहमतों और उनके विरोधियों की सूची देखकर कोई भी चौक सकता है। इस बात पर नहीं कि ये और इतने सारे 'महानुभाव' जवाहरलाल नेहरू से असहमत और उनके विरोधी थे बल्कि इस बात पर कि कैसे इसके बावजूद जवाहरलाल नेहरू वह हो सके जिसके पार जाने की हर राजनीतिक कोशिश फेल रही है। आज का दिन बहस का नहीं स्मरण का है, बहस तो हम करते ही रहते, कर लेंगे, आज तो स्मरण..
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