शास्त्र-पुराणों की बात नहीं जानता। बस इतना समझ में आ रहा कि न सत युग, न कलियुग यह टचयुग है। हर तरफ टच की महिमा है। टच की महिमा से काक पिक, बक मराल बन जाता है ▬▬ बिन टच कुछ काम न होई, टच करो देवा! टच है तो सारे काम चट से हो जाते हैं। टच न हो तो सारे मंसूबों को कोई भी चट कर जाता है। टच से साधारण मिठाई प्रसाद में बदल जाता है। आइडियोलॉजी को टच कर लेने पर बहुत आसानी से बकवास विचार में बदल जाता है। कोई बड़े काम पर निकलता है तो मंदिर को टच करते हुए निकलता है। बड़े साहेब से मिलने के पहले बड़े बाबू को टच कर लेना लाभजनक होता है। छात्र परीक्षा हॉल में घुसने के पहले पुस्तक को फाइनल टच देता है। फाइनल टच माने परीक्षा खत्म हो जाने के बाद जीवन में फिर कभी उसे टच करने की कोई जरूरत नहीं रह जाती है। प्रत्याशी बनने का लाभ उन्हें ही मिल पाता है जो टचाशी बनने में सफल होते हैं।
हमने देखा है, वे जो भी कहते हैं टच करने के बाद ही कहते हैं। उनकी बात टच कर जाती है। वे टचेश्वर हैं उनको टच करने का हक है। कोई दूसरा उन्हें क्या उनके घेरे के आस-पास को भी टच करे तो वे बड़े टची हो जाते हैं। कुछ टच बाबा तो जेल चले गये हैं, सुना है वे वहाँ भी टचयोग में लगे हुए हैं बाकी टचस्वामी बाहर में ही टचहील कर रहे हैं। इस टच काल में भाग्य लक्ष्मियाँ टच विद्या और टच निपुणता पर ही मुग्ध होती हैं; भागती लक्ष्मियाँ भी। अब नामकरण में भी युगानुरूप बदलाव दिखना चाहिए। नया नाम कुछ इस प्रकार का हो सकता है ▬▬ टचनाथ, टचेंद्र, टचकारी, टचोदय, टचकिशोर, टचभद्र, टचख्यान, टचू बाबू, टचराज, टचेश्वरी, टचकी, टचीता, टचांगी, टचानी आदि। गानों में कहा जायेगा ▬▬ तू कहीं भी जाये मेरा टच तेरे साथ होगा। युवा झूमते हुए गायेंगे ▬▬ वो साँई मेरा भी टच करवा दे, नहीं पूरा तो थोड़ा करवा दे, दे दे कोई तो टच करवा दे। बस-ट्रेन के अधिकतर नित्य यात्री टचा-टची की कृपा से ही आवगमन के कष्ट को हँसते-हँसते सह लेते हैं।
‘बड़े स्मार्ट हो जी’ कहने पर प्रशंसा का वह सुरूर कहाँ चढ़ता है जो ‘बड़े टचाश हो जी’ कहने पर चढ़ता है। मन झूमकर आँखों-आँखों में कहता है ▬▬▬ बार-बार कहो, टचाश कहलाना अच्छा लगता है। टचाश विज्ञापन ▬▬ आनंद भरपूर, टचानंद; टच करो, चट करो। अभी टचकारी बाबू कह गये हैं, आपका कुछ नहीं हो सकता, आप किसी के टच में नहीं रहते हैं। खैर अभी वक्त है। टच में रहने की कोशिश कीजिये। उनकी बातें टच कर गई हैं। हाय टचकारी बाबू! आप भी क्या खूब टच करते हो! अब कभी मौका आया तो पत्र ‘आदरणीय श्री’ से नहीं कर, ‘टचश्री’ शुरू करने का तथा समापन ‘आपका कृपाकांक्षी’ या ‘आपका स्नेहाकांक्षी’ जैसी सड़ियल मनोरथ-विज्ञापी पदों से नहीं कर ‘आपका टचाकांक्षी’ या ‘आपका टचाशी’ जैसे चट-असरकारी पदों से करने का इरादा पक्का होता जा रहा है। आपकी बात आप जानें.. मैं तो आपका टचाकांक्षी...
अश्विनी उवाच :-
जवाब देंहटाएं" मोबाईलस्य टच स्क्रीन सानिध्ये अहम कसमखादास्मि, यावत टचस्क्रीन बिद्यते धरा:, कोलख्यानस्य टचपुराणा: स्तवन सर्वबाधा विनष्टस्य एहि टचयुगे कलियुगे ।"