जहाँ ज्ञान की सीमा, बाहरी और भीतरी दोनों, समाप्त होती है विश्वास का क्षेत्र शुरू होता है। ज्ञान, संदेह के अलावे, हर बात पर संदेह करता है। आधुनिकता का प्रारंभ रेने देकार्त के संदेह करने से होना माना जाता है। आधुनिकता का संबंध ज्ञानोदय से है। आधुनिकता अंधविश्वास से टकराती है। संदेह ज्ञान से ऊपजता है। जहाँ ज्ञान ठहर जाता है, वहीं संदेह रुक जाता है, जहाँ ज्ञान और संदेह दोनों साथ छोड़ जाते हैं, विश्वास आदमी को और आदमी विश्वास को थाम लेता है। ज्ञान का ठहर जाना आँख का साथ छोड़ जाना होता है। जिनकी दृष्टि दृश्य के पार, बुद्धि और ज्ञान के सहारे, हमेशा कुछ टटोलती रहती है, वे विश्वासी नहीं होते हैं। जिनकी दृष्टि दृश्य के पार देखने की संभावनाओं को नहीं टटोलती वे विश्वास के क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं। पूर्ण अंधत्व पूर्ण विश्वास का शर्त्तिया आधार होता है।
कहा जाता है कि प्रेम अंधा होता है। क्योंकि प्रेम का आधार पारस्परिक विश्वास होता है। संवेगात्मक परस्पराश्रयिता Emotional Mutual Dependency पारस्परिक विश्वास की विधायिका होती है। ज्ञान और विश्वास से प्रेम के संबंध में प्रेम के पक्ष का महत्त्व जब माधव किसी तरह से उद्धव को नहीं समझा पाये तब उन्हें प्रेम पोषिता गोपियों के पास भेज दिया। उद्धव के वहाँ पहुँचने के पहले गोपियों ने समवेत रूप से तय कर लिया न उद्धव का ज्ञान लेना है और न माधव का प्रेम देना है। हिंदी लोक के मन यह उक्ति बैठ गई--- न उधो का लेना, न माधो का देना! Emotional Mutual Dependency में से पारस्परिकता-- Mutual-- गायब हो जाने पर सिर्फ संवेगात्मक आश्रयिता------ Emotional Dependency बचती है। सामान्य उदाहरण लें तो यह प्रथमतः शगुन विचार में प्रकट होता है और अंततः रोजमर्रा के अन्य व्यवहार में विकट होकर समाया रहता है। संदेह होगा तो विश्वास नहीं और विश्वास होगा तो संदेह नहीं। आदमी के ज्ञान की सीमा बहुत जल्दी प्रकट हो जाती है और विश्वास के क्षेत्र में वह जल्दी ही प्रवेश कर जाता है, इसलिए सामान्य लोगों की बात ही क्या कई बार बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी शगुन विचार से बाहर नहीं निकल पाते हैं! पढ़े-लिखे, शिक्षित लोगों की अंगुलियों में ग्रह शांति की मुद्रिकाएँ अधिक शोभायमान होती हैं! आदमी के ज्ञान की सीमा चाहे जितनी जल्दी प्रकट हो जाये लेकिन मि. विश्वास के घर (प्रसंगतः, वी. एस. नयपॉल की एक किताब का यह नाम है।) में वह अतिथि ही होता है और अधिक देर तक नहीं ठहरता है। जिंदगी ज्ञान और विश्वास दोनों के सहारे चलती है!
सृष्टि में सारी चीजें एक दूसरे से जुड़ी हैं। जुड़ाव एक अपर को आश्रय देता है। लेकिन आश्रय की मात्रा एक स्तर तक बढ़ जाने के बाद ही कोई एक चीज दूसरे से पर आश्रित होती है।
दोस्ती का मूलमंत्र है अनाश्रित भरोसा
-- Non-dependent dependability
जिसे हम मुहब्बत कहते हैं, उसे संवेगात्मक परस्पराश्रयिता-- Emotional Mutual Dependency के रूप में समझा जा सकता है। संवेगात्मक परस्पराश्रयिता की मात्रात्मक स्थिति की पारस्परिकता हमेशा एक जैसी नहीं रहती है, एक खास परिवृत्त -- Range--- में गतिमान रहती है। संवेगात्मक परस्पराश्रयिता की मात्रात्मकता की अधिकता के अधिक समय तक एक मान पर स्थिर रहने या पारस्परिकता में असंतुलन बढ़ जाने से से व्यक्तित्व में एक अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है जिसे Emotional Dependency Disorder के रूप में समझा जा सकता है। इसे दूर किया जा सकता है...
पूरी सृष्टि में परस्पराश्रयिता सक्रिय रहती है। इस नैसर्गिक परस्पराश्रयिता के साथ सभ्यता में सहमति, लेकिन अधिकतर मामलों में वस्तुतः असहमति, के आधार पर सामाजिक संबंधों में परस्पराश्रयिता सक्रिय रहती है। संवेगात्मक परस्पराश्रयिता-- Emotional Mutual Dependency के अलावे भी बहुत सारी Dependencies हैं। वित्तीय, सामाजिक, आदि, इन सभी प्रकार की परस्पराश्रयिताओं को Power Dependencyकह सकते हैं। यहाँ Power से मुराद उस प्रविधि से है जिस से आकांक्षित/ इच्छित परिणाम हासिल होता है। मुख्यतः भौतिक परिस्थितियों और कठ-अहं---- False Ego और संघाती संवादों - Conflicting Communication के कारण Emotional Mutual Dependency (मुहब्बत) में से कभी Emotional पक्ष तो कभी Mutual पक्ष, तो कभी दोनों पक्ष कमजोर पड़ने लगता है, या गायब हो जाता है, लेकिन Dependency के बनी रहने तक संपर्क --- मधुर न सही, असंतुलित ही सही--- बना रहता है। Emotional Mutual Dependency असंतुलित होकर अंततः Power Dependency में बदल जाती है। Power Point पर प्रभुत्व जमाकर बैठा पक्ष यदि Power Dependency को संतुलित करने के विवेक और कौशल का इस्तेमाल नहीं करता है तो संवेगात्मक परस्पराश्रयिता Emotional Mutual Dependency का तत्त्वांतरण संवेगात्मक गुलामी---- Emotional Enslaving में होने लगता है और संवेगात्मक अतिचार---- Emotional Torture के रूप में प्रकट होता रहता है। मुहब्बत का रिश्ता हो या रिश्ते के किसी रूप में मुहब्बत हो इस में आज संवेगात्मक अतिचार---- Emotional Torture बढ़ रहा है तो इसे Power Discourse के रूप में समझते हुए बढ़ती हुई Power Dependency को दूर करने/ कम करने के लिए सचेत होकर Power Point की निर्मिति को समझना जरूरी है। संवेगात्मक अतिचार---- Emotional Torture आदमी को तोड़कर रख देता है!! खुद को और खुद से जुड़ो लोगों को संवेगात्मक अतिचार---- Emotional Torture से बचाना जरूरी है। क्या कहते हैं आप!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें