सरकार सोच रही है कि आत्महत्या के प्रयास को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया जाये। सरकार सोच रही है इधर बहुत ही दर्दनाक खबर है कि एक छात्र ने आत्महत्या कर ली है।पिछले दिनों बड़े पैमाने पर किसानों ने आत्महत्या की खबरें आई थी। इस तरह की खबर आती ही रहती है। आत्महत्या के आत्म-निर्णय तक पहुँचने की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है; इतनी जटिल कि इसके लिए किसी एक ही कारण को पर्याप्त मानना बहुत ही मुश्किल होता है।
आत्महत्या और हत्या को अलगाव में रखकर देखना भी सही नहीं है। पहले भी कहा था कि हत्या और आत्महत्या की गहरी घाटी से गुजरते हुए मनुष्य अपने अकेलेपन में एक ऐसी आभासी दुनिया के हवाले हो जाता है, जिसमें सच का झूठ से और अमृत का विष से अदृश्य रणनीतिक गठबंधन होता है। मानवीय हितों का अधिकांश साम्राज्यवादी आकांक्षाओं से नत्थी हो जाता है। त्याग, क्षमा, धृति, करुणा, पर दुख कातरता, समता और स्वतंत्रता जैसे संचित मूल्य हास्यास्पद बना दिये जाते हैं। आधुनिकता और प्रगतिशीलता की असमाप्य परियोजनाएँ अपने प्राणघाती स्थगन के दौर में पहुँच जाती हैं।
आत्महत्या और हत्या को अलगाव में रखकर देखना भी सही नहीं है। पहले भी कहा था कि हत्या और आत्महत्या की गहरी घाटी से गुजरते हुए मनुष्य अपने अकेलेपन में एक ऐसी आभासी दुनिया के हवाले हो जाता है, जिसमें सच का झूठ से और अमृत का विष से अदृश्य रणनीतिक गठबंधन होता है। मानवीय हितों का अधिकांश साम्राज्यवादी आकांक्षाओं से नत्थी हो जाता है। त्याग, क्षमा, धृति, करुणा, पर दुख कातरता, समता और स्वतंत्रता जैसे संचित मूल्य हास्यास्पद बना दिये जाते हैं। आधुनिकता और प्रगतिशीलता की असमाप्य परियोजनाएँ अपने प्राणघाती स्थगन के दौर में पहुँच जाती हैं।
आत्महत्या का प्रयास करने पर किसी के मजबूर हो जाने की प्रक्रिया को सिर्फ उस व्यक्ति से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है। मनुष्य सामाजिक और राजनीतिक प्राणी है। मनुष्य के जीने को संभव बनाने में समाज और राज की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है। मनुष्य के जीने को असंभव बनाने या बन जाने में भी समाज और राज की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है। कानून बनाकर भले ही आत्महत्या के प्रयास को अपराध के दायरे से मुक्त कर दिया जाये लेकिन, नैतिक दृष्टि से समाज और राज अपने को अपराध के दायरे से बाहर नहीं कह सकता है।
कितना अधिक मजबूर होकर कोई आत्महत्या करने की बात सोचता है। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक उत्पीड़न की चतुर्दिक निकृष्टताओं की घेरेबंदी फँसे व्यक्ति के जब सारे संपर्क समाप्त हो चुके होते हैं, किसी संवाद की कोई गुंजाइश नहीं बची रहती है, आशा की सारी किरणें बुझ चुकी होती हैं, आदमी अकेला और असहाय हो जाता है तब वह आत्महत्या के निर्णय तक पहुँचता है।
इसका एक और पक्ष है, जिस पर विचार करना चाहिए। यदि आत्महत्या का प्रयास अपराध के दायरे में नहीं होगा तो आत्महत्या के प्रयास में सहयोग करना अपराध के दायरे में कैसे हो सकता है! जबकि आत्महत्या के प्रयास में बाधा पहुँचना अपराध के दायरे में होगा! छोटी-छोटी विफलताओं, निराशाओं, कुंठाओं, अक्षमताओं आदि को आधार बनाकर आत्महत्या के लिए प्रेरित करनेवाले व्यक्तियों और एजेसिंयों की भी फिर क्या कमी रहेगी! आत्महत्या के प्रयास को लागू करने को सहज बनानेवाली आत्महत्या सहयोगी संस्थाओं की भी जरूरत महसूस की जायेगी। जरा गौर से देखें तो आत्महत्या को अपराध के दायरे से बाहर रखने की बात सोचना एक तरह से हत्या को अपराध के दायरे से बाहर रखने की बात सोचने जैसा ही है। हत्यारों की तरफ से यह साबित करना बहुत मुश्किल नहीं होगा कि असल में किसी व्यक्ति का हत्यारा, हत्यारा नहीं उसकी सहमति से उसकी आत्महत्या के प्रयास में सहयोगी है। ये सारी शंकाएँ हैं। जब सरकार सोच रही है, तो सरकार चलानेवाले बड़े-बड़े दिमाग इसकी बारीकियों और इससे जुड़े अन्य परिणामों के बारे में भी अवश्य ही सोच रहे होंगे और तदनुसार इसमें प्रावधान रखे जायेंगे। इतने बड़े जनादेश के साथ आई जनतांत्रिक सरकार की नीयत पर संदेह करना ठीक नहीं है।
लेकिन यह कैसा अच्छा दिन आ गया कि जीने के अधिकार को सुनिश्चित करने के बदले इतने बड़े जनादेश के साथ आई जनतांत्रिक सरकार मरने के अधिकार को सुनिश्चित करने की दिशा में सक्रिय हो गई?
हम एक भयानक दौर से गुजर रहे हैं! क्या सचमुच सुन नहीं पा रहे हैं हम इस भयानक दौर की तेज होती कर्कश आवाज और क्या सचमुच समझ नहीं पा रहे हैं संपन्नों का क्रूर इरादा! सोच कर सिहर जाता है नागरिक मन कि जीने की कोशिश में निश्चित विफलताओं का वरण और अपनी संभावनाओं के निरंतर छीजन को स्वीकार करने की नियति का मुकाबला नहीं कर पाना 'आत्म हत्या' नहीं तो और क्या है! आत्महत्या की कोशिश करना गुनाह हो-न-हो, किसी व्यक्ति इस तरह की कोशिश करने की मजबूरियों में फँसने से बचा नहीं पाना तो जरूर गुनाह है।
असाध्य शारीरिक रोग और सहन-सीमा से बाहर हो जाने पर रोगी के लिए करुण हत्या {mercy killing} और आत्म हत्या [suicide] का अंतर ध्यान में न रहे तो अपराध के दायरे से आत्म हत्या [suicide] को बाहर किये जाने का अर्थ समझ में आना मुश्किल है। मुश्किल है यह समझना कि अपराध के दायरे से आत्म हत्या [suicide] को बाहर किया जाना कठिन जीवन-स्थिति, जो अधिकतर मामलों में समुचित रोजगार के अभाव सामाज-आर्थिक कारणों से बन जाती है, में आत्म हत्या [suicide] करने के लिए उकसाने के बराबर है। इसलिए, इस संदर्भ में बात करने के लिए, करुण हत्या {mercy killing} और आत्म हत्या [suicide] का अंतर ध्यान में रखना बेहद जरूरी है।
yes sir
जवाब देंहटाएंBahut nik lagal apnek bichar ,aahak bichar me jate gahrai achhi otba gyan hamra kaha achhi je ohi par tippani karbak dussahas kari
जवाब देंहटाएंthik chhai dekhai chhiyai
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