बुधवार, 6 अगस्त 2014

दान धर्म का मूल है, पूजा का प्रारंभ

दान धर्म का मूल है, पूजा का प्रारंभ

किस बात पर हंगामा है, भाई! गजब तमाशा है! काम करने की जगह पर हंगामा, अच्छे दिन में ये अच्छी बात नहीं है। लक्षण अच्छे नहीं दिख रहे हैं। अब साहब यदि गये हैं तो दान-पुन्न का काम तो करना ही है, न। भगवान ने इतना कुछ दिया है तो भगवान के प्रति कुछ फर्ज बनता है या नहीं बनता है। यह बात तो समझ में आनी चाहिए कि दान-पुन्न के लिए मंदिर से बढ़िया और कोई जगह नहीं होती है। भगवान को भी पैसे की जरूरत है, कई लोग तो काला धन भगवान को सौंप आते हैं। यह तो प्रभु की महिमा है कि वे रंगभेद से ऊपर हैं और काले सफेद में फर्क नहीं करते सब को एक ही नजर से देखते हैं। प्रभु बड़े-छोटे का भेद नहीं करते। बड़ा-छोटा तो प्रभु ने लीला के लिए बनाया है। बड़ा-छोटा प्रभु की लीला और क्रीड़ा का विस्तार है। प्रभु मन में कुछ न लायें, यह उनका बड़प्पन है। लेकिन, साहब का तो फर्ज बनता है न कि वे अपनी तरह से इसका ध्यान रखें। सो गंगाजल की तरह पवित्र राशि उन्होंने समर्पित किया है। इस पर भी हंगामा!

अब इसे कोई सांप्रदायिक बताये तो साहब को इसकी बहुत चिंता नहीं करनी चाहिए। साहब को वैसे भी पता है कि सेकुलरवादियों के कमंडल में कितना जल है। जो हो, जिसे हंगामा करना हो करे, साहब को अपना काम करना है। देश का पैसा! देश का पैसा नहीं, तो क्या विदेश का पैसा दान में दिया जायेगा। साहब देश के गौरव हैं, तो देश गरीबों को समझना ही होगा देश की गरिमा की रक्षा करने में, देश का पैसा नहीं तो किसका पैसा लगेगा? इतनी-सी बात नहीं समझते हैं। आदमी हो या देश पैसा कमाता है किस लिए, दान-पुन्न के लिए ही न! वैसे भी शास्त्रों में साफ-साफ कहा गया है, धन की तीन ही गति है ▬▬ दान, भोग और नाश। सब से अच्छी गति है, दान! दान सब से बड़ा पुरुषार्थ है। साहब ने दान नहीं किया होता तो उस धन का क्या होता? भोग या नाश किया होता! साहब ने इस पैसे को भोग में तो नहीं लगाया और उसे नाश से बचा लिया है। यह कम बड़ी बात है, क्या?

इस पुरुषार्थ और प्रयोजनमूलक प्रज्ञा पर गर्व होने के बदले हंगामा हो रहा है! प्रभु उन्हें क्षमा करेंगे, साहब ने यह प्रार्थना भी की है। भगवान कुछ लेते नहीं, सब कुछ लौटा देते हैं। बड़े भक्त से लेकर छोटे भक्तों को लौटा देते हैं! अरे यह दान बेकार नहीं जायेगा, लौटकर भक्तों के पास ही आयेगा। कैसे! इसका जिसको ज्ञान हो जायेगा वह बिना टाइम टेबुल देखे बुलेट ट्रेन पर सवार होकर पशुपतिनाथ की तरफ नहीं चला जायेगा भाई! इस तरह का भी कोई सवाल करता है। विश्वनाथ का दिया पशुपतिनाथ को पहुँचाया यही तो काँवरिया निभाव है! गंगा माता जब छिटकर, शिव जी जटा से छुटकारा लेकर मैदान की तरफ चल पड़ी तो भक्तों का यह फर्ज बन गया कि नहीं, कि गंगा मैया को फिर शिव जी के शरण में वापस लाये! भारत जब विश्व-शक्ति बनने जा रहा है तो संवाद तो होना ही चाहिए। विश्वनाथ और पशुपतिनाथ के बीच सेकुलरों के कारण जो लगभग संवादहीनता की स्थिति उत्पन्न हुई, उसे समाप्त करने में यह एक छोटा-सा कदम है। याद है न चाँद पर उतरते समय यही कहा गया था कि यह छोटा-सा कदम, सभ्यता में बहुत बड़ी उछाल है। साहब का यह छोटा-सा कदम बहुत बड़ा उछाल है। भाइयो और बहनो आप समझ रहे हैं, न!

दान किया है। दान करना धर्म के मूल को सींचने सरीखा है। दान किया है। पूजा का प्रारंभ है। अभी जब बिहार में पानी लौटेगा, तो देखिये कि कितने अपना जीवन दान करेंगे और वह भी सहर्ष। जिसके पास जो है, वही दान करेगा न! सरल शब्दों में जिसके पास जीवन है, वह जीवन दान करेगा और सहर्ष। हर्ष से दान का महत्त्व अपरिमित हो जाता है। साहब दानी हैं वे हर किस्म के दान की सराहना करते हैं। अब कोई समझे ही नहीं तो और बात है! सब को समझाना साहब को आता है, बस थोड़ा-सा धीरज रखिये। थोड़ा-सा!

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