सरकार बनानेवाला संसदीय दल या दलों का समूह संसद में पक्ष और सरकार बनाने की प्रक्रिया से बाहर के दल या दल समूह विपक्ष कहलाता है। पक्ष का हो या विपक्ष का संसदीय दल अपने-अपने राजनीतिक दलों से इस अर्थ में भिन्न होता है कि राजनीतिक दल का प्रत्येक सदस्य जनप्रतिनिधि नहीं होता है जबकि संसदीय दल का प्रत्येक सदस्य होता है। जैसे सरकार पूरे देश की होती है वैसे ही विपक्ष भी सारे देश का होता है। दलों के राजनीतिक हितों का अनिवार्य विरोध और संघर्ष संसदीय हितों के अनिवार्य टकराव या विरोध में बदल जाये तो अंततः जनतंत्र क्षतिग्रस्त हो जाता है। राजनीतिक जन संघर्ष और संसदीय जनप्रातिनिधिक संघर्ष के तरीके और तमीज में अगर फर्क मिटा दिया गया तो संसद के सत्र कामकाज के बदले राजनीतिक रैलियों में बदल कर रह जाने से खुद को बचा नहीं पायेंगे। यह जनतंत्रीय व्यवस्था के लिए शुभ नहीं है।
किसी मुद्दे पर सिर्फ उन लोगों को, जिनका दलीय अवस्थान जगजाहिर है और जिनका अपना मत अपने विवेक के बदले अपने दल से ही तय होने के लिए बाध्य है को बुलाकर मीडिया में चर्चा करना चर्चा को कोलाहल में बदलना है। मीडिया को चाहिए कि वह खुद को पूरी तरह से पॉलिटिकल स्फीयर में बदलने से यथासंभव बचते हुए पब्लिक स्फीयर में बने रहने की कोशिश करे। सरकार के समर्थन या विरोध के बदले नीतियों और मुद्दों के औचित्य या अनऔचित्य पर उन लोगों के लिए जगह बनाये जो न तो संसद में बोल सकते हैं न सड़क पर बोल सकते हैं, लेकिन जिनका बोलना महत्त्व का हो सकता है।
अन्यथा देश और देश की व्यवस्था को अबांछित फाट से बचाना बहुत मुश्किल होता जायेगा।
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सोमवार, 24 अगस्त 2015
जनतंत्र में पक्ष विपक्ष
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