मंगलवार, 19 मई 2015

ऐ वतन रहने दे बुझी आँखों में सूखे का सन्नाटा

जिसे चोट खाकर सम्हलना ही नहीं आता वह मुहब्बत करे तो क्यों
आकाश आह भरे और धरती पर जो इस कदर बिखर जाये तो क्यों

बात कुछ और होगी दिल दिवाना जो महफिल में जिक्र करे तो क्यों
गैर के हाथ रुमाल का लहराना गीली आँख अब कबूल करे तो क्यों

हम खयालों की दुनिया में रहनेवाले गैर जमीन पर पग धरे ही क्यों
हासिल कुछ होना नहीं ख्वाबों की किरचों के सिवा तो डरे ही क्यों

गैर की हो गली तो आखिर कोई किसी गुलमुहर के तले मरे ही क्यों
तरन्नुम दिलकश मगर जो दिल से रिश्ता नहीं कोई कान धरे ही क्यों

जो बहार खिजाँ की यारी से ही मकबूल अगवानी उसकी करे ही क्यों
ऐ वतन रहने दे बुझी आँखों में सूखे का सन्नाटा पानी कोई भरे ही क्यों

मंजिल नहीं इंतजार में खफा-खफा उठे कदम जल्दबाजी करे ही क्यों
लो पूछे राधा अगर गोकुल बहुत प्यारा कन्हैया तो फिर डगरे ही क्यों



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