श्रम कानून या श्रमिक अधिकार दरअसल मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों का ही विस्तार है। ऐसे में, श्रम कानूनों या श्रमिक अधिकारों के उल्लंघन को अपराध की श्रेणी (IPC) में नहीं रखा जाना मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों की सरासर अवहेलना है।
श्रमिक संगठनों (Trade Unions) की जरूरत राज्य सत्ता और पूँजी सत्ता की साँठगाँठ के बल पर किये जानेवाले श्रमिकों के शोषण से नागरिकों को मुक्त करने के लिए ही पैदा हुई थी। कहने में हिचक नहीं कि शोषण सत्ता का मूल स्वभाव है और पोषण उस मूल स्वभाव की संतुष्टि का रणकौशल! कालांतर में, श्रमिक संगठनों का विकास एक समानांतर सत्ता के रूप में होता चला गया। अब हमारे सामने राजनीतिक सत्ता, पूँजी सत्ता और श्रमिक संगठन सत्ता से घिरे साधारण, असहाय और निरुपाय मनुष्य की तरह जीने का ही विकल्प बचा है। ऐसे में आजादी और नागरिकता के सपने..... क्या कहते हैं!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें