शनिवार, 11 अप्रैल 2015

हे माँ, देखने के बाद भी हम कहाँ देख पाते हैं



मातृत्व की संभावनाओं से समृद्ध होने के कारण
औरत की सामाजिक समझदारी मर्दों के मुकाबिले कहीं अधिक होती है
किसी औरत में मातृत्व की संभावनाओं के प्रकट होते ही
औरत के खून का नमक नृत्य में तब्दिल होने लगता है
और आँख के नींबू में थरथराने लगती है नई हलचल
किसी औरत में मातृत्व की संभावनाओं के प्रकट होते ही
बदलने लगती है आकृति और थोड़ी-सी पृथ्वी और इक जरा-सी प्रकृति भी


नमक के नृत्य और नींबू की थरथराहट में औरत का तब्दिल होना
उफ्फ! इस तब्दिल होने को समझना मुश्किल नहीं ना-मुमकीन होता है
पुरुष पदार्थ स्त्री तत्त्व को समझने में ना-काम ठहरता है

गृह निष्कासन के ठीक बाद इसे सीता में सुगबुगाते हुए बाल्मीकि ने देखा
दुष्यंत की तलाश में आश्रम से बाहर श्लथ पग धरते शकुंतला में कालिदास ने देखा
गोबर के चिनगारी छोड़कर भाग खड़े होने के बाद धनिया में होरी ने देखा
देखा, नमक के नृत्य और नींबू की थरथराहट में औरत का तब्दिल होना देखा
देखा मगर, बहुत करीब जाकर भी कहाँ समझ पाये!

देखने के बाद भी, हम कहाँ देख पाते हैं माँ का चेहरा
बहुत करीब जाकर कभी देखा भी, तो कहाँ समझ पाये होते हैं!
वर्षों पहले नमक के नृत्य और नींबू की थरथराहट में
बदली उस आकृति और थोड़ी-सी पृथ्वी और इक जरा-सी प्रकृति को ही
कुछ इस तरह पुरुष पदार्थ स्त्री तत्त्व को समझने में ना-काम रहता है कि
देखने के बाद भी हम कहाँ देख पाते हैं माँ का चेहरा


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  • Bharat Bharati SamajRam MurariPushpa Roy और 25 अन्य को यह पसंद है.
  • Neel Kamal प्रभावशाली कविता ।
  • Uday Raj Singh Badhiyaa aur marmasparshee. Aabhaar !
  • Prafulla Kumar Singh Really,we can't understand our mothers. Why did they suffer much in order to bring us in this world?
  • Vinay Sheel देखने के बाद भी हम कहाँ देख पाते हैं माँ का चेहरा ...
  • Mamata Ranjan Trivedi बहुत ही सारगर्भित
  • Vikram Kshatri सत्यम शिवम् सुंदरम है माँ ।
  • प्रफुल्ल कोलख्यान सामान्यतः पाठ के स्तर पर कविता में प्रयुक्त प्रसंगों में से अपनी उस समय की रुचि के अनुरूप कुछ प्रसंगों को ग्रहण करते तो कुछ को छोड़ते आगे बढ़ जाते हैं। यही सामान्य पाठ प्रक्रिया है। मुझे बहुत अच्छा लगा कि इस सामान्य पाठ प्रक्रिया के बाहर निकलकर एक मित्र ने आत्मीय ढंग से नमक के नृत्य और नींबू की थरथराहट में औरत का तब्दिल होने को विस्तार से जानना चाहा! अब मैं क्या जवाब दूँ! जानता हूँ कविता भाषा की अबौद्धिक प्रक्रिया है, यह बहुत ही आसान जवाब होता। लेकिन सवाल बहुत ही निश्च्छल और वैध है, इसका उत्तर शाद अन्य लोगों के लिए भी उपयोगी हो सकता है। नमक क्षारीयता और नींबू अम्लीयता का संदर्भ है। सृष्टि में जो सृजन का क्षारीय और अम्लीय अंतर्क्रियाएँ चलती रहती हैं उनके रासायनिक-भौतिक संदर्भों को देखा जा सकता है। प्राकृतिक सृजन की की संभावनाओं से समृद्ध होने के कारण औरत की प्राकृतिक स्थिति मर्दों से भिन्न होती है और यही भिन्नता वह कारण है कि औरत के खून का नमक नृत्य में तब्दिल होने लगता है और आँख के नींबू में थरथराने लगती है नई हलचल। इससे आगे जानना हो तो कविता खुद बोलेगी या उसकी तरफ से साक्षी विज्ञान की हो सकती है। कोई प्रसंग उठा तो फिर कभी...
  • Yojna Kalia कविता अपने विविध स्तरीय धरातलों से बात करती है ।यह कतई आवशक नहीं कि पाठक और लेखक का धरातल एक हो पाए।रचनाकार की रचना उसके अपन परिवेश एवं स्थि तियों का परिणाम और पाठक का अर्थ स्वीकार उसकी विविध भिन्न परिस्थिति का हो सकता है। दोनों को आजादी है अपने अपने रस को अपने ढंग से लेने की।यहाँ हर पाठ उसी रचना में से नये अर्थों को तलाश कर स्वयं भी लेखक के सममक्ष पहुंच सकता है
  • Ram Murari बदली उस आकृति और थोड़ी-सी पृथ्वी और इक जरा-सी प्रकृति को ही
    कुछ इस तरह पुरुष पदार्थ स्त्री तत्त्व को समझने में ना-काम रहता है कि
    देखने के बाद भी हम कहाँ देख पाते हैं माँ का चेहरा...

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