'सभा' में 'सभी' भ्रामक पद नहीं
इस समय भी एक 'सभा' है और 'सभी' हैं,
यकीनन 'सभा' में 'सभी' भ्रामक पद नहीं
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थे धर्मराज सद्यः और सदेह
उनके ठीक सामने थी धर्म की मार्यादा
अपनी पूरी शक्ति के साथ थे गदाधारी
जो जानते थे शक्ति के सीमांत पर अपने होने का अर्थ
धनुर्धारी को गर्व था गांडीव पर
जानते थेप्रत्यंचा खीचने के लिए
पीछे जगह न हो तो बेकार है धनु!
उनके ठीक सामने थी धर्म की मार्यादा
अपनी पूरी शक्ति के साथ थे गदाधारी
जो जानते थे शक्ति के सीमांत पर अपने होने का अर्थ
धनुर्धारी को गर्व था गांडीव पर
जानते थेप्रत्यंचा खीचने के लिए
पीछे जगह न हो तो बेकार है धनु!
और पितामह!
वे तो राज की रक्षा की वचनबद्धता में चीखते हुए भी
अपनी खामोशी की गुफा के बहुत अंदर
हस्तिनापुर के जनमन से इतर और उत्तर
थे अपनी खामोशी की गुफा के बहुत अंदर!
वे तो राज की रक्षा की वचनबद्धता में चीखते हुए भी
अपनी खामोशी की गुफा के बहुत अंदर
हस्तिनापुर के जनमन से इतर और उत्तर
थे अपनी खामोशी की गुफा के बहुत अंदर!
इस तरह जो भी थे,
अपने होने में भी नहीं थे,
उनका होना न होना था।
अपने होने में भी नहीं थे,
उनका होना न होना था।
वे सभी बने थे
धर्म, शक्ति, विद्या और वचनवद्धता के एक गुणसूत्र से
और वे अपनी बनक में एक सूत्री थे
उनमें बाहरी चपलताएँ हिलोर तो बहुत मारती थी
लेकिन भीतर की एक गुणसूत्रता में
बदलाव की गति नहीं थी
और न थी कोई मति,
थी आंतरिक गतिमयता अचिन्हे शून्य में स्थिर!
धर्म, शक्ति, विद्या और वचनवद्धता के एक गुणसूत्र से
और वे अपनी बनक में एक सूत्री थे
उनमें बाहरी चपलताएँ हिलोर तो बहुत मारती थी
लेकिन भीतर की एक गुणसूत्रता में
बदलाव की गति नहीं थी
और न थी कोई मति,
थी आंतरिक गतिमयता अचिन्हे शून्य में स्थिर!
जानती थी द्रौपदी भी इस बात को
इसलिए बाहर से इन्हें धिक्कारते हुए
भीतर से संयत थी।
जानती थी कि सिर्फ केशव ही हैं
पूरे परिप्रेक्ष्य में बहुगुणसूत्रात्मक बनक से लैस
अपने पहचाने हुए शून्य में स्थिर रहते हुए भी
आंतरिक गतिमयता से भरपूर और चपल
उनकी बनक में थे बहुत सारे सूत्र और
इसे जानती थी द्रौपदी
क्योंकि उसने देखा था
विराट का भीतरी रूप अपने एकांत में!
इसलिए बाहर से इन्हें धिक्कारते हुए
भीतर से संयत थी।
जानती थी कि सिर्फ केशव ही हैं
पूरे परिप्रेक्ष्य में बहुगुणसूत्रात्मक बनक से लैस
अपने पहचाने हुए शून्य में स्थिर रहते हुए भी
आंतरिक गतिमयता से भरपूर और चपल
उनकी बनक में थे बहुत सारे सूत्र और
इसे जानती थी द्रौपदी
क्योंकि उसने देखा था
विराट का भीतरी रूप अपने एकांत में!
पांचाली, राधा और कुब्जा बहुतेरे के के बहुगुणसूत्र
उस समय केशव की बनक में झनझना रहे थे
पांचाली ने गुहार लगाई
बहुगुणसूत्री बनक की उस झनक को!
उस समय केशव की बनक में झनझना रहे थे
पांचाली ने गुहार लगाई
बहुगुणसूत्री बनक की उस झनक को!
न सुदर्शन चक्र चला,
न कोई अस्त्र या शस्त्र या शास्त्रार्थ!
न कोई अस्त्र या शस्त्र या शास्त्रार्थ!
बस केशव थे जो वस्त्र में बदलते चले गये
केशव वस्त्र छुपाना ही नहीं,
खुद को वस्त्र में बदलना भी जानते थे
और हाँ, जानती थी पांचाली भी केशव की इस कला को!
केशव वस्त्र छुपाना ही नहीं,
खुद को वस्त्र में बदलना भी जानते थे
और हाँ, जानती थी पांचाली भी केशव की इस कला को!
इस समय भी एक 'सभा' है और 'सभी' हैं,
यकीनन 'सभा' में 'सभी' भ्रामक पद नहीं
सभी एक गुणसत्री हैं
वे अपने होने में ही धन्य हैं और
मन से नहीं जन से बेपरवाह
खुद को वस्त्र तो क्या
विधेयक में भी नहीं बदल सकते
भूमि अधिग्रहण बिल में प्रवेश करते ही
उनकी असहमति सीधी हो जाती है
यकीनन 'सभा' में 'सभी' भ्रामक पद नहीं
सभी एक गुणसत्री हैं
वे अपने होने में ही धन्य हैं और
मन से नहीं जन से बेपरवाह
खुद को वस्त्र तो क्या
विधेयक में भी नहीं बदल सकते
भूमि अधिग्रहण बिल में प्रवेश करते ही
उनकी असहमति सीधी हो जाती है
पिता कहा करते थे मेरी ऐंठ को ललकारते हुए,
बिल में घुसते ही साँप सीधा हो जाता है
हालाँकि मैं वह नहीं था
जो पिता समझते थे
क्योंकि वे भी एक गुणसूत्री थे
और मैं अपने गुमान में
बहुगुणसूत्री होने की तरफ बढ़ रहा था
बिल में घुसते ही साँप सीधा हो जाता है
हालाँकि मैं वह नहीं था
जो पिता समझते थे
क्योंकि वे भी एक गुणसूत्री थे
और मैं अपने गुमान में
बहुगुणसूत्री होने की तरफ बढ़ रहा था
अफसोस!
'सभा' में 'सभी' के सामने शर्मिंदा हूँ कि
यह सभा भी एक गुणसूत्री है
खूबसूरत बात यह कि
मेरे पास इस अफसोस से बाहर निकलने के लिए
जरूरी भ्रम सुरक्षित है।
'सभा' में 'सभी' के सामने शर्मिंदा हूँ कि
यह सभा भी एक गुणसूत्री है
खूबसूरत बात यह कि
मेरे पास इस अफसोस से बाहर निकलने के लिए
जरूरी भ्रम सुरक्षित है।
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