मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

मैं क्या करूँगा

अब तुम ही बताओ दिन की चाँदनी का मैं क्या करूँगा
है मुहब्बत नहीं, तो फिर मेहरबानी का मैं क्या करूँगा

जो टिक न पाया आँख में उस पानी का मैं क्या करूँगा
समझ के भीतर छिपी तेरी नादानी का मैं क्या करूँगा

मुफलिसी हँसती है तेरी हुक्मरानी का मैं क्या करूँगा
अब दर्द में डूबी अपनी इस कहानी का मैं क्या करूँगा

उम्र कट गई अब बता इस लंतरानी का मैं क्या करूँगा
जब पाँव में न अटे तो, उस जूते जापानी का मैं करूँगा

भूख नाचती है सामने, ताल रुहानी का मैं क्या करूँगा
गाँव न गाँठ में कुछ, तेरी निगरानी का मैं क्या करूँगा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें