गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

मुहब्बत बहुत ही कबीराना है

ये मुहब्बत बहुत ही कबीराना है न जाने किस तरह तुम ने जिया होगा
मजाजी, हकीकी कई रंग हैं इश्क के जाने कब किस रंग को चुना होगा

जिंदगी जीने का वक्त कम मुख्तसर, जाने वक्त किस तरह दिया होगा
कई तरीके हैं जीने के जमाने में, जाने कब किस तरीके को चुना होगा

बेरंग पानी भी नहीं तो जज्बात को जाने किस तरह बेरंग किया होगा
अपनों में पराये और परायाओं में अपने, जाने कैसे अपना किया होगा

जाने तुम्हें मोह का कौन-सा मंतर कब बाजार ने इस तरह दिया होगा
खुशबू जो हँसी में है जाने उसे किसने कब किस सामान से लिया होगा

दिल देह में रहता था, अब दिल में देह को जाने किस तरह सिया होगा
झूठ हो बेशक इश्क ने हर आँख को यकीनन कभी-न-कभी रुलाया होगा



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