सोमवार, 6 अप्रैल 2015

क्या करे कोई

चश्मा पहनने से सिर्फ चश्मा दिखे तो ऐसे चश्मे का क्या करे कोई
साहित्य पढ़ने से सिर्फ साहित्य दिखे तो ऐसे पढ़े का क्या करे कोई

मुहब्बत में मुहब्बत ही दिखे केवल तो, ऐसे दिखे का क्या करे कोई
हुस्न की ढलान में भी मुहब्बत न खिले, ऐसे खिले का क्या करे कोई

जज्वात में हो रंग और हकीकत बदरंग तो, ऐसे रंग का क्या करे कोई
बिन कहे तो क्या कहने पर भी न समझे ऐसे अंतरंग का क्या करे कोई

इंतजार में हो जाये मन ही बुझ जाये, ऐसे इंतजार का क्या करे कोई
मिलन में न हो कोई खनक तो ऐसे इंतजार मिलन का क्या करे कोई

वक्त बदल देता, मुहब्बत बदल जाये ऐसे मुहब्बत का क्या करे कोई
हुस्न के मय्यार को सोता ही सूख जाये, ऐसे सोता का क्या करे कोई

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