तुम कामयाब रहे तुम्हें मुबारक, नामालूम अब तनहाइयों का क्या होगा
यह सोच झगड़ता न झगड़ा तो, नामालूम अब मेहरबानियों का क्या होगा
संत अस्सी पर लौटे हँस कर ये कहा, नामालूम अब वाणियों का क्या होगा
आज कुछ नहीं तो क्या पहले था, नामालूम अब विज्ञानियों का क्या होगा
कातिल जो जन्मदिन पर सोचता, नामालूम अब कुर्बानियों का क्या होगा
गाँव बुझती आग की उबाल पर नामालूम अब राजधानियों का क्या होगा
कार्वाइयाँ तो उलटी ही चली तेरी नामालूम अब हैरानियों का क्या होगा
हमारे घर का कलह जो बदनाम, नामालूम अब सैलानियों का क्या होगा
खुद से ही छिपते उम्र गई सारी, नामालूम इन रौशनाइयों का क्या होगा
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