चिंता की बात है कि पूरी दुनिया में युद्ध जैसा वातावरण बनता जा रहा है। भारतीय सीमा भी बेहद अशांत है। जवान शहीद हो रहे हैं। खबरों के अनुसार सीमा पर हालात अच्छे नहीं हैं। शहीदों के परिजनों पर एक तरफ दुख का पहाड़ टूट रहा है, तो वे शासन के कथित रवैये से भी कम दुखी नहीं प्रतीत हो रहे हैं। वे लोग जो शांति के समय युद्ध की भाषा बोलकर बेमतलब हवा गरम करते रहते हैं, ऐसे अवसर पर किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं। दोष किसका है, यह तय करना महत्त्वपूर्ण तो हो सकता है, लेकिन इससे युद्ध की विभिषिका कम नहीं हो जाती है। हर हाल में शांति बहाल करना ही प्राथमिक दायित्व होता है। नागरिक समाज के लिए शांति का वातावरण ही सार्वकालिक रूप से काम्य होता है। बुद्धिमत्ता युद्ध कर लेने में नहीं बल्कि शांति बनाये रखने में है।
स्वाभाविक रूप से, मेरे जैसे साधारण नागरिक को न तो कूटनीतिक जरूरतों का पर्याप्त ज्ञान होता है और न ही उन जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी ठोस निर्णय तक पहुँचने के लिए अपनाई गई रणनीतिक प्रक्रियाओं की ही कोई ठोस-तरल जानकारी होती है। सिर्फ एक नागरिक बेचैनी होती है। इस बेचैनी में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक बातचीत का रास्ता बंद करने का फैसला बहुत जरूरी और बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं साबित हो रहा है। बड़े-से-बड़े विवाद अंततः शांति के वातावरण में और बातचीत से ही कारगर हल की तरफ बढ़ते हैं। भारत की सीमा पर बढ़ रही अशांति ने संयुक्त राष्ट्र संघ की चिंता को भी बढ़ा दिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ बातचीत से मामले को हल करने का अपील कर रहा है। जाहिर है, बातचीत प्रारंभ करने की दिशा में पहल करने का दायित्व भी प्रमुख रूप से उसी पर आयेगा जिसने बातचीत को बंद करने की दिशा में पहल की है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के आग्रह पर बातचीत का वातावरण बनाने के लिए इस तरह की पहल करना कूटनीतिक हार नहीं भी तो, बड़ा कूटनीतिक झटका जरूर होगा।
उधर पाकिस्तान का अंदरुनी संकट भी कम भयानक नहीं है। पूरा पाकिस्तान फिर राजनीतिक उथलपुथल के दौर से गुजर रहा है। अंदरुनी उथलपुथल के भयावह दौर से गुजर रहे राष्ट्र के साथ अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक बातचीत के अपने जोखिम होते हैं। यह जोखिम तब बहुत ज्यादा बढ़ जाता है जब सीमा पर भयानक मुठभेड़ भी जारी हो। नागरिकों को मिल रही खबरों में ऐसे संकेत हैं कि यह मुठभेड़ एक तरह से बड़े स्तर का है। इस की भयावहता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि रक्षा मंत्री ने बहुत उच्च-स्तरीय प्रतिरक्षा चर्चा की जरूरत महसूस की है। युद्ध के वातावरण में विकास की बात बिल्कुल बेमानी हो जाती है। नये प्रधानमंत्री की सकारात्मक पहल पर उनके शपथ ग्रहण समारोह में पड़ोसी राष्ट्राध्यक्षों के आगमन और ब्रिक्स के आयोजन से जो नये प्रभावशाली प्रस्थान का प्रतीकात्मक परिवेश बना, उसे बहुत ही सराहनीय परिणाम कहा जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की सुखद बयार इतनी जल्दी एक भयानक तूफान में बदलने लगेगी किसे इसका अनुमान था!
राजनीतिक दृष्टिकोण में पर्क होने के बावजूद अखंड बहुमत से बनी नई सरकार से लोगों को अब भी बहुत उम्मीद है। देश को भ्रष्टाचार मुक्त विकास का वातावरण चाहिए। अपनी क्रय क्षमता की पहुँच के भीतर बाजार चाहिए। उत्तम शिक्षा का वातावरण चाहिए। संतुलित स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने का समुचित अवसर चाहिए। सम्यक रोजगार के अवसरों की उपलब्धता चाहिए। देश की बहुत बड़ी आबादी को जानमारा दरिद्रता के चंगुल से छुकारा चाहिए। यह सब बहुत-बहुत, बहुत नहीं भी तो, थोड़ा-थोडा, थोड़ा भी तो जरूर चाहिए! ध्यान में रखने की जरूरत है कि राजनीतिक उन्माद और राष्ट्रवाद के बलिदानी आह्वान से न तो जनता का ध्यान अपने जीवन की दुःसाध्य जरूरतों से बँटाने में मदद मिलेगी और न किसी और को जवाबदेह साबित करने से ही उम्मीद से भरी जनता को बहलाया-फुसलाया जा सकेगा।
सीमा पर बसी आबादी एक तरह के भय, आतंक, आशंका और असुरक्षा की मनःस्थिति एवं वस्तु-स्थिति में जी रही है, तो देश के बाकी लोग एक भिन्न प्रकार के भय, आतंक, आशंका और असुरक्षा के दौर से गुर रहे हैं। सामाजिक सौमनस्य के असह्य तनाव की ओर तेजी से बढ़ रहे इस भयानक दौर को काबू करने और समाप्त करने की दिशा बिना किसी और विलंब के कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया, पारस्परिक विश्वास तथा सहकारी भावनाओं को कारगर एवं फलदायी तरीके से सक्रिय नहीं किया गया तो अच्छे दिन का इंतजार कर रही अखंड बहुमत प्रदायी नागरिक समाज के बिदकते बहुत देर नहीं लगेगी। नागरिक समाज की तरफ से संकेत आना शुरू हो गया है। हाँ, यह ठीक है कि प्राप्त बहुमत के आधार पर सरकार चलती रहेगी, जनतांत्रिक संस्थाएँ काम करती हुई दिखती रहेगी लेकिन वह नहीं हो पायेगा जिसका आश्वासन अभी नागरिक मन में जिंदा है।
समावेशी, विघ्नविनाशी विकास के लिए वागदत्त जनतांत्रिक सरकार को बहुत ही सोच समझकर सार्वदैशिक सकारात्मक पहल करनी चाहिए। यह कठिन तो बहुत है, लेकिन असंभव नहीं।
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