जनतंत्र की ये हँसी ठिठोली! लो बिहार की लग गई बोली! आये लेकर भरी हवाई झोली! हँसकर धीरे-से मुट्ठी खोली!
ये बिहार है और जनता है भोली पैसे से मिलती नहीं यहाँ रंगोली जयकारे में मगन मूर्खों की टोली काशी अब कोशी ने सुनी ठिठोली
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