जो तेरी बातों का बुरा मान जाते तो भी एक बात होती
होती है रोज मगर बात-बात में भी एक बात नहीं होती
जुबान से निकले अपने कान तक न लौटे बात नहीं होती
तेरी क्या, काश जिंदगी में कभी मन की बात सुनी होती
जो कहा उससे बाहर जाकर तुम ने मेरी बात सुनी होती
शब्दों के जाल में फँसी मछली की तरह जो बात न होती
आलू के किसान की अपनी मिट्टी से, हुई कोई बात होती
खुशफहमी और होती, खुदकुशी की कोई बात नहीं होती
खेत से, फसल से, जो थोड़ी-सी भी हुई कोई बात होती
खेती भी तेरे फलसफे में सिर्फ शब्द नहीं कोई बात होती
सिझे दानों से ही मुखातिब रहे बाली से कोई बात होती
कद्र थाली की ठीक, बाली की भी थोड़ी कोई बात होती
होती है रोज मगर बात-बात में भी एक बात नहीं होती
जुबान से निकले अपने कान तक न लौटे बात नहीं होती
तेरी क्या, काश जिंदगी में कभी मन की बात सुनी होती
जो कहा उससे बाहर जाकर तुम ने मेरी बात सुनी होती
शब्दों के जाल में फँसी मछली की तरह जो बात न होती
आलू के किसान की अपनी मिट्टी से, हुई कोई बात होती
खुशफहमी और होती, खुदकुशी की कोई बात नहीं होती
खेत से, फसल से, जो थोड़ी-सी भी हुई कोई बात होती
खेती भी तेरे फलसफे में सिर्फ शब्द नहीं कोई बात होती
सिझे दानों से ही मुखातिब रहे बाली से कोई बात होती
कद्र थाली की ठीक, बाली की भी थोड़ी कोई बात होती
Badhiya khani
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