रविवार, 1 मार्च 2015

जीना हुआ मुहाल

बच्चों को नहीं रोजी, ना माँ-बाप का कोई ख्याल
पूछते हैं भरता क्यूँ नहीं टैक्स अरे कल्लू कव्वाल

चादर भीतर पाँव पसारें, अब ये कैसे करें कमाल
चादर कित पावैं हाथ में है बचा क्या कोई रुमाल

मध्य वित्त नहीं रे बाबा वित्त मध्य है खड़ा सवाल
यंग इंडिया! चूँ की हिम्मत या है कोई तेरी मजाल

वे खुश, नहीं मचा है नहीं मचेगा कोई बड़ा बबाल
मचा अगर तो आयेगा काम किस दिन ये कोतवाल

कमुआ लुट गया मलुआ लूटा जी हो गया मालामाल
पैंतीस का बीस, कभी यंग न होता, रहता है बेहाल

क्या करे कुछ समझ न आये अब जीना हुआ मुहाल
सेवक जी सेवा के चौदह फीसद पर, फिक्स दलाल

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