गुरुवार, 6 नवंबर 2014

ऐसे थे बाबा नागार्जुन


सभी जानते हैं बाबा (नागार्जुन) का कोलकाता से भी गहरा लगाव था। वे कोलकाता आते रहते थे। उन दिनों, जब वे कोलकाता आते थे, हमारी हालात उन ग्रामीणों की तरह होती थी जिनके गाँव के सीवान पर किसी पेड़ के नीचे कोई सिद्ध महात्मा अपनी धुनी रमाये बैठा हो। 

उस दिन बाबा की धुनी गीतेश शर्मा जी के जनसंसार कार्यालय में जमी हुई थी। लोग आ जा रहे थे। मैं उनके निकट बैठा हुआ था। एक सज्जन आये। बाबा को अपनी एक पोथी समर्पित कर गये। बाबा ने उनके सामने उसे उलट-पुलटकर देखा। उनके जाने के बाद उन्होंने पोथी मेरी तरफ बढ़ाई। मैं ने भी उलट-पुलटकर देखा। उसमें छंद, बे-छंद, कथा, योग ना जाने क्या नहीं था। मैंने उसे देखकर बाबा की तरफ बढ़ा दिया। उन्होंने जो कहा उसका आशय था ▬▬ रख लो। मैंने कहा ▬▬ हम एकर की करबै! बाबा ने किताब वापस ले ली और अपने सिरहाने रखी ट्रंजिस्टर के नीचे दबा दिया। फिर उन्होंने मुझ से पूछा कि मेरी कोई किताब क्यों नहीं छप रही है। मैंने कहा कि क्या इसका उत्तर मुझे देना चाहिए! बाबा चुप। कुछ देर बाद उन्होंने कहा कि लड़का प्रकाशन चलाता है, बड़ा प्रकाशक तो नहीं है लेकिन अच्छी पांडुलिपि की उसे तलाश रहती है, मैं उससे बात करूँगा। फिर रुककर उन्होंने कहा कि मैं राधाकृष्ण से बात करूँगा। अभी तो मैं राउरकेला जाऊँगा, जब दिल्ली में रहूँ तो संपर्क करना। जाहिर है, मैं यह संपर्क कभी कर नहीं पाया। उन दिनों अलखनारायण आलोचना में काफी सक्रिय थे, प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े थे। बाबा उनके साथ भी कोलकाता के राजेंद्र छात्रावास में टिका करते थे। वे अलखनारायण को और डॉ. शंभुनाथ को बहुत स्नेह करते थे, उन दोनों पर अपना अधिकार भी बहुत मानते थे। मैंने सुना बाबा ने अपनी गाँठ से कुछ पैसा डॉ. शंभुनाथ को अलखनारायण की किताब के लिए चुपके से दिया था। ऐसे थे बाबा नागार्जुन और किताबों की दुनिया...! बस यूँ ही, यह प्रसंग याद आ गया!


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Vinod Sankar, Madan Mohan Chamoli, Shiv Shambhu Sharma और 48 अन्य को यह पसंद है.

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Vivekanand Sharma आपका ,बस यूँ ही ,सह प्रसंग याद आ गया हमारे जैसों के लिए इतिहास दर्शन जैसा ही है ।सादर निवेदन है, आपका बस यूँ ही , बराबर यूँ ही होता रहे !
आभार!
कल 11:10 पूर्वाह्न बजे · पसंद · 2


Vijay Pushpam Pathak आप भाग्यशाली हैं प्रफुल्ल ।कितने समृद्ध हैं आप ।
23 घंटे · नापसंद · 1


Dileep Mridul "NAGARJUN" BABA KI YE PANKTIYAN, JO UNHONE "NIRALA" JI KI SMRITI ME KAHIN THI,
"drishti paini, bal jhabare, fati lungi, nagn tan,
kintu antardipt tha aakash sa unmukt man,
use marane diya hamane, rah gaya chhutkar pawan,
ab bhale hi yad karate raho, sau sau hawan ".
...........BAS YUNHI, YAAD SUDHIYON KE JHAROKHE SE.
20 घंटे · नापसंद · 2


Suresh Upadhyay प्रकाशोत्सव पर बधाई व शुभकामनाए
19 घंटे · पसंद · 1


Deepu Naseer बाबा के बारे में पढ़ना और सुनना बहुत भाता है। यह सिलसिला जारी रहना चाहिए। जिस -जिस के पास बाबा से जुड़े संस्मरण हैं उन सबको इसे शेयर करना चाहिए।
12 घंटे · पसंद


Javed Usmani नमन
4 घंटे · पसंद


Ravindra Parmar अपनी स्मृति के खजाने से कुछ और मोती निकालिये हुजूर
3 घंटे · पसंद

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