बुधवार, 8 अक्टूबर 2014

जनता का लेखक!

कवि विमल कुमार (Vimal Kumar) जी की एक प्रविष्टि पढ़ने के बाद

जनता का लेखक! किस जनता का! हिंदी के महत्त्वपूर्ण लेखकों के अपने कुछ पाठक तो हैं लेकिन जनता (सार्त्र जिसे पब्लिक कहते हैं) नहीं है। मुक्तिबोध को सार्त्र प्रिय थे और अकारण नहीं है कि मुक्तिबोध 'जनता का लेखक' और 'जनता का साहित्य' की बात को अपने अंतःकरण की गहराई से उठाते थे। मुक्तिबोध बहुत ही बेचैन लेखक थे। प्रसंगवश, मुक्तिबोध अपनी रचना का कठोर संपादन तो करते ही थे कतर-ब्यौंत भी कम नहीं करते थे। रचना न एक ही तरह से कभी संभव होती है और न उसका शिल्प ही एक तरह से बनता है। महत्त्वपूर्ण लेखक का लेखन धरती की तरह होता है, इसमें पहाड़ भी होते हैं, सपाट मैदान भी, नदी, द्वीप तालाब आदि भी होते हैं। इतना ही नहीं लेखन की इस धरती पर संभव हुए पहाड़ में अजंता, एलोरा, खजुराहो और कहीं-कहीं ताजमहल और लालकिला आदि भी होते हैं ▬▬ धीरे बहो दोन रे! 
(धीरे बहो दोन रे - मिखाइल सोलोखोव)



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Suresh Upadhyayअमनदीप सिँहSanjay Binnani और 12 अन्य को यह पसंद है.


View 3 more comments


Vinay Krishna Kalakar to wo he hai jo puruskar ko aswikar kar de
कल 09:16 पूर्वाह्न बजे · पसंद


Noor Mohammad Noor Pahle koyee dene ki ghosna to kre phir oose asweekar karte kitni der lgegi.....sathi...
कल 10:18 पूर्वाह्न बजे · पसंद


Vinay Krishna Ji, aapne thik kaha.mai Bihar ke vaishali zila ke Hajipur me rahata hu.maine yaha dekha hai ke kuchh kavi aur sahityakar aise hai jo sanstha ko dhan-rashi dekar santha dwara khud ko sammanit karbaya.sanstha ke log bhi kuchh rashi hadap kar gaya,tatha newspa[per me mote akshar me kavi aur sahityakar ko sanstha dwara sammanit kiya gaya.
22 घंटे · नापसंद · 1


Noor Mohammad Noor Bhai vinaijee....hajipur se dilli tak yhi tmasha hota hai....
21 घंटे · पसंद · 1

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