बुधवार, 22 अप्रैल 2015

कोई मुझे रुला दे

जी मेरी आँखों में आँसू नहीं, कोई मुझे रुला दे
हाँ फिर चाहे तो उम्र भर के लिए मुझे भुला दे

बहैसियत इश्क-ए-जम्हूरियत कोई जो भुला दे
इन रगों के खून में जो ख्वाब इस कदर घुला दे

फिर पाँच वर्षों तक पानी नहीं बस बुलबुला दे
जी मेरी खैर-ओ-खुशी अपनी तकरीर से बुला दे


अपने खिलाफ मेरा गुनाह मुझ से ही कबुला ले
खुदकुशी का सामान तरकीब से सामने झुला दे

सियासत क्या जो नीयत को ही न ढुलमुला दे
तवारीखी इल्म हासिल इससे तू मिलाजुला दे

दर्द दामन में जो है महफूज उसे चैन से सुला दे
नई सफर के हौसले को तो मौसम कोई खुला दे

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